स्वप्निल संसार
Tuesday, December 14, 2010
"ख्वाहिश"
यूँ तो मायूसियों को
दूर कर दिया अपने आप से
पर उदासियाँ है की
दौड़ी चली आती हैं
यूँ तो जिवन जीने के ,
तरीके बहुत से हैं
पर खामोशियाँ है की ,
कुछ करने ही नहीं देती
तन्हाइयां थी की
बदस्तूर शामिल रही जिंदगी में
जिंदगी कट गई
कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश में "
Newer Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)